Wednesday, September 11, 2013

‘रश्मिरथी’

हरि ने भीषण हुंकार किया, अपना स्वरूप-विस्तार किया,
डगमग-डगमग दिग्गज डोले, भगवान् कुपित होकर बोले-
‘जंजीर बढ़ा कर साध मुझे,
हाँ, हाँ दुर्योधन! बाँध मुझे।
यह देख, गगन मुझमें लय है, यह देख, पवन मुझमें लय है,
मुझमें विलीन झंकार सकल, मुझमें लय है संसार सकल।
अमरत्व फूलता है मुझमें,
संहार झूलता है मुझमें।
बाँधने मुझे तो आया है, जंजीर बड़ी क्या लाया है?
यदि मुझे बाँधना चाहे मन, पहले तो बाँध अनन्त गगन।
सूने को साध न सकता है,
वह मुझे बाँध कब सकता है? 
                                              - रामधारी सिंह 'दिनकर' 

Thursday, July 25, 2013

फूटा घड़ा

बहुत  समय  पहले  की  बात  है  , किसी  गाँव  में  एक   किसान  रहता  था . वह  रोज़   भोर  में  उठकर  दूर  झरनों  से  स्वच्छ  पानी  लेने  जाया   करता  था . इस  काम  के  लिए  वह  अपने  साथ  दो  बड़े  घड़े  ले  जाता  था , जिन्हें  वो  डंडे  में   बाँध  कर  अपने कंधे पर  दोनों  ओर  लटका  लेता  था .
उनमे  से  एक  घड़ा  कहीं  से  फूटा  हुआ  था  ,और  दूसरा  एक  दम  सही  था . इस  वजह  से  रोज़  घर  पहुँचते -पहुचते  किसान  के  पास  डेढ़  घड़ा   पानी  ही बच  पाता  था .ऐसा  दो  सालों  से  चल  रहा  था .
सही  घड़े  को  इस  बात  का  घमंड  था  कि  वो  पूरा  का  पूरा  पानी  घर  पहुंचता  है  और  उसके  अन्दर  कोई  कमी  नहीं  है  ,  वहीँ  दूसरी  तरफ  फूटा  घड़ा  इस  बात  से  शर्मिंदा  रहता  था  कि  वो  आधा  पानी  ही  घर  तक  पंहुचा   पाता  है  और  किसान  की  मेहनत  बेकार  चली  जाती  है .   फूटा घड़ा ये  सब  सोच  कर  बहुत  परेशान  रहने  लगा  और  एक  दिन  उससे  रहा  नहीं  गया , उसने  किसान   से  कहा , “ मैं  खुद  पर  शर्मिंदा  हूँ  और  आपसे  क्षमा  मांगना  चाहता  हूँ ?”
“क्यों  ? “ , किसान  ने  पूछा  , “ तुम  किस  बात  से  शर्मिंदा  हो ?”
“शायद  आप  नहीं  जानते  पर  मैं  एक  जगह  से  फूटा  हुआ  हूँ , और  पिछले  दो  सालों  से  मुझे  जितना  पानी  घर  पहुँचाना  चाहिए  था  बस  उसका  आधा  ही  पहुंचा  पाया  हूँ , मेरे  अन्दर  ये  बहुत बड़ी  कमी  है , और  इस  वजह  से  आपकी  मेहनत  बर्वाद  होती  रही  है .”, फूटे घड़े ने दुखी होते हुए कहा.
किसान  को  घड़े  की  बात  सुनकर  थोडा  दुःख  हुआ  और  वह  बोला , “ कोई  बात  नहीं , मैं  चाहता  हूँ  कि  आज  लौटते  वक़्त  तुम   रास्ते में  पड़ने  वाले  सुन्दर  फूलों  को  देखो .”
घड़े  ने  वैसा  ही  किया , वह  रास्ते  भर  सुन्दर  फूलों  को  देखता  आया , ऐसा करने से  उसकी  उदासी  कुछ  दूर  हुई  पर  घर  पहुँचते – पहुँचते   फिर  उसके  अन्दर  से  आधा  पानी  गिर  चुका  था, वो  मायूस  हो  गया  और   किसान  से  क्षमा  मांगने  लगा .
किसान  बोला ,” शायद  तुमने  ध्यान  नहीं  दिया  पूरे  रास्ते  में  जितने   भी  फूल  थे  वो  बस  तुम्हारी  तरफ  ही  थे , सही  घड़े  की  तरफ  एक  भी  फूल  नहीं  था . ऐसा  इसलिए  क्योंकि  मैं  हमेशा  से  तुम्हारे  अन्दर  की  कमी को   जानता  था , और  मैंने  उसका  लाभ  उठाया . मैंने  तुम्हारे  तरफ  वाले  रास्ते  पर   रंग -बिरंगे  फूलों के  बीज  बो  दिए  थे  , तुम  रोज़  थोडा-थोडा  कर  के  उन्हें  सींचते  रहे  और  पूरे  रास्ते  को  इतना  खूबसूरत  बना  दिया . आज तुम्हारी  वजह  से  ही  मैं  इन  फूलों  को  भगवान  को  अर्पित  कर  पाता  हूँ  और   अपना  घर  सुन्दर  बना  पाता  हूँ . तुम्ही  सोचो  अगर  तुम  जैसे  हो  वैसे  नहीं  होते  तो  भला  क्या  मैं  ये  सब  कुछ  कर  पाता ?”
दोस्तों  हम  सभी  के  अन्दर  कोई  ना  कोई  कमी  होती है  , पर यही कमियां हमें अनोखा  बनाती हैं . उस किसान की  तरह  हमें  भी  हर  किसी  को  वो  जैसा  है  वैसे  ही स्वीकारना चाहिए  और  उसकी  अच्छाई  की  तरफ  ध्यान  देना  चाहिए, और जब हम ऐसा करेंगे तब “फूटा घड़ा” भी “अच्छे घड़े” से मूल्यवान हो जायेगा.

Thursday, November 29, 2012

यहाँ दो पात्र हैं : एक है भारतीय और एक है इंडियन ! आइए देखते हैं दोनों में क्या बात होती है !

यहाँ दो पात्र हैं : एक है भारतीय और एक है इंडियन ! आइए देखते हैं दोनों में क्या बात होती है !

इंडियन : ये शिव रात्रि पर जो तुम इतना दूध चढाते हो शिवलिंग पर, इस से अच्छा तो ये हो कि ये दूध जो बहकर नालियों में बर्बाद हो जाता है, उसकी बजाए गरीबों मे बाँट दिया जाना चाहिए ! तुम्हारे शिव जी से ज्यादा उस दूध की जरुरत देश के गरीब लोगों को है. दूध बर्बाद करने की ये कैसी आस्था है ?

भारतीय : सीता को ही हमे
शा अग्नि परीक्षा देनी पड़ती है, कभी रावण पर

प्रश्नचिन्ह क्यूँ नहीं लगाते तुम ?


इंडियन : देखा ! अब अपने दाग दिखने लगे तो दूसरों पर ऊँगली उठा रहे हो ! जब अपने बचाव मे कोई उत्तर नहीं होता, तभी लोग दूसरों को दोष देते हैं. सीधे-सीधे क्यूँ नहीं मान लेते कि ये दूध चढाना और नालियों मे बहा देना एक बेवकूफी से ज्यादा कुछ नहीं है !

भारतीय : अगर मैं आपको सिद्ध कर दूँ की शिवरात्री पर दूध चढाना बेवकूफी नहीं समझदारी है तो ?

इंडियन : हाँ बताओ कैसे ? अब ये मत कह देना कि फलां वेद मे ऐसा लिखा है इसलिए हम ऐसा ही करेंगे, मुझे वैज्ञानिक तर्क चाहिएं.

भारतीय : ओ अच्छा, तो आप विज्ञान भी जानते हैं ? कितना पढ़े हैं आप ?

इंडियन : जी, मैं ज्यादा तो नहीं लेकिन काफी कुछ जानता हूँ, एम् टेक किया है, नौकरी करता हूँ. और मैं अंध विशवास मे बिलकुल भी विशवास नहीं करता, लेकिन भगवान को मानता हूँ.

भारतीय : आप भगवान को मानते तो हैं लेकिन भगवान के बारे में जानते नहीं कुछ भी. अगर जानते होते, तो ऐसा प्रश्न ही न करते ! आप ये तो जानते ही होंगे कि हम लोग त्रिदेवों को मुख्य रूप से मानते हैं : ब्रह्मा जी, विष्णु जी और शिवजी (ब्रह्मा विष्णु महेश) ?

इंडियन : हाँ बिलकुल मानता हूँ.


भारतीय : अपने भारत मे भगवान के दो रूपों की विशेष पूजा होती है : विष्णु जी की और शिव जी की ! ये शिव जी जो हैं, इनको हम क्या कहते हैं - भोलेनाथ, तो भगवान के एक रूप को हमने भोला कहा है तो दूसरा रूप क्या हुआ ?

इंडियन (हँसते हुए) : चतुर्नाथ !

भारतीय : बिलकुल सही ! देखो, देवताओं के जब प्राण संकट मे आए तो वो भागे विष्णु जी के पास, बोले "भगवान बचाओ ! ये असुर मार देंगे हमें". तो विष्णु जी बोले अमृत पियो. देवता बोले अमृत कहाँ मिलेगा ? विष्णु जी बोले इसके लिए समुद्र मंथन करो !

तो समुद्र मंथन शुरू हुआ, अब इस समुद्र मंथन में कितनी दिक्कतें आई ये तो तुमको पता ही होगा, मंथन शुरू किया तो अमृत निकलना तो दूर विष निकल आया, और वो भी सामान्य विष नहीं हलाहल विष ! भागे विष्णु जी के पास सब के सब ! बोले बचाओ बचाओ !

तो चतुर्नाथ जी, मतलब विष्णु जी बोले, ये अपना डिपार्टमेंट नहीं है, अपना तो अमृत का डिपार्टमेंट है और भेज दिया भोलेनाथ के पास ! भोलेनाथ के पास गए तो उनसे भक्तों का दुःख देखा नहीं गया, भोले तो वो हैं ही, कलश उठाया और विष पीना शुरू कर दिया ! ये तो धन्यवाद देना चाहिए पार्वती जी का कि वो पास में बैठी थी, उनका गला दबाया तो ज़हर नीचे नहीं गया और नीलकंठ बनके रह गए.

इंडियन : क्यूँ पार्वती जी ने गला क्यूँ दबाया ?

भारतीय : पत्नी हैं ना, पत्नियों को तो अधिकार होता है ..:P किसी गण की हिम्मत होती क्या जो शिव जी का गला दबाए......अब आगे सुनो फिर बाद मे अमृत निकला ! अब विष्णु जी को किसी ने invite किया था ???? मोहिनी रूप धारण करके आए और अमृत लेकर चलते बने.

और सुनो - तुलसी स्वास्थ्य के लिए अच्छी होती है, स्वादिष्ट भी, तो चढाई जाती है कृष्ण जी को (विष्णु अवतार).

लेकिन बेलपत्र कड़वे होते हैं, तो चढाए जाते हैं भगवान भोलेनाथ को !

हमारे कृष्ण कन्हैया को 56 भोग लगते हैं, कभी नहीं सुना कि 55 या 53 भोग लगे हों, हमेशा 56 भोग ! और हमारे शिव जी को ? राख , धतुरा ये सब चढाते हैं, तो भी भोलेनाथ प्रसन्न ! कोई भी नई चीज़ बनी तो सबसे पहले विष्णु जी को भोग ! दूसरी तरफ शिव रात्रि आने पर हमारी बची हुई गाजरें शिव जी को चढ़ा दी जाती हैं......

अब मुद्दे पर आते हैं........इन सबका मतलब क्या हुआ ???

विष्णु जी हमारे पालनकर्ता हैं, इसलिए जिन चीज़ों से हमारे प्राणों का
रक्षण-पोषण होता है वो विष्णु जी को भोग लगाई जाती हैं !

और शिव जी?

शिव जी संहारकर्ता हैं, इसलिए जिन चीज़ों से हमारे प्राणों का नाश होता है,
मतलब जो विष है, वो सब कुछ शिव जी को भोग लगता है !
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इंडियन : ओके ओके, समझा !

भारतीय : आयुर्वेद कहता है कि वात-पित्त-कफ इनके असंतुलन से बीमारियाँ होती हैं और श्रावण के महीने में वात की बीमारियाँ सबसे ज्यादा होती हैं. श्रावण के महीने में ऋतू परिवर्तन के कारण शरीर मे वात बढ़ता है. इस वात को कम करने के लिए क्या करना पड़ता है ? ऐसी चीज़ें नहीं खानी चाहिएं जिनसे वात बढे, इसलिए पत्ते वाली सब्जियां नहीं खानी चाहिएं !और उस समय पशु क्या खाते हैं ?

इंडियन : क्या ?

भारतीय : सब घास और पत्तियां ही तो खाते हैं. इस कारण उनका दूध भी वात को बढाता है ! इसलिए आयुर्वेद कहता है कि श्रावण के महीने में (जब शिवरात्रि होती है !!) दूध नहीं पीना चाहिए. इसलिए श्रावण मास में जब हर जगह शिव रात्रि पर दूध चढ़ता था तो लोग समझ जाया करते थे कि इस महीने मे दूध विष के सामान है, स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं है, इस समय दूध पिएंगे तो वाइरल इन्फेक्शन से बरसात की बीमारियाँ फैलेंगी और वो दूध नहीं पिया करते थे ! इस तरह हर जगह शिव रात्रि मनाने से पूरा देश वाइरल की बीमारियों से बच जाता था ! समझे कुछ ?

इंडियन : omgggggg !!!! यार फिर तो हर गाँव हर शहर मे शिव रात्रि मनानी चाहिए, इसको तो राष्ट्रीय पर्व घोषित होना चाहिए !

भारतीय : हम्म....लेकिन ऐसा नहीं होगा भाई कुछ लोग साम्प्रदायिकता देखते हैं, विज्ञान नहीं ! और सुनो. बरसात में भी बहुत सारी चीज़ें होती हैं लेकिन हम उनको दीवाली के बाद अन्नकूट में कृष्ण भोग लगाने के बाद ही खाते थे (क्यूंकि तब वर्षा ऋतू समाप्त हो चुकी होती थी). एलोपैथ कहता है कि गाजर मे विटामिन ए होता है आयरन होता है लेकिन आयुर्वेद कहता है कि शिव रात्रि के बाद गाजर नहीं खाना चाहिए इस ऋतू में खाया गाजर पित्त को बढाता है ! तो बताओ अब तो मानोगे ना कि वो शिव रात्रि पर दूध चढाना समझदारी है ?

इंडियन : बिलकुल भाई, निःसंदेह ! ऋतुओं के खाद्य पदार्थों पर पड़ने वाले
प्रभाव को ignore करना तो बेवकूफी होगी.

भारतीय : ज़रा गौर करो, हमारी परम्पराओं के पीछे कितना गहन विज्ञान छिपा हुआ है ! ये इस देश का दुर्भाग्य है कि हमारी परम्पराओं को समझने के लिए जिस विज्ञान की आवश्यकता है वो हमें पढ़ाया नहीं जाता और विज्ञान के नाम पर जो हमें पढ़ाया जा रहा है उस से हम अपनी परम्पराओं को समझ नहीं सकते !

जिस संस्कृति की कोख से मैंने जन्म लिया है वो सनातन (=eternal) है, विज्ञान को परम्पराओं का जामा इसलिए पहनाया गया है ताकि वो प्रचलन बन जाए और हम भारतवासी सदा वैज्ञानिक जीवन जीते रहें !

Saturday, November 24, 2012

आराम से पढ़िए और फुरसत में पढ़िए लेकिनपढ़िए जरुर...कही आपके साथ ये सब न हो रहा हो....एक व्यक्ति ऑफिस में देर रात तक कामकरने के बादथका -हारा घर पहुंचा . दरवाजा खोलतेही उसनेदेखा कि उसका पांच वर्षीय बेटा सोनेकी बजायेउसका इंतज़ार कर रहा है .अन्दर घुसते ही बेटे ने पूछा —“ पापा ,क्या मैं आपसेएक सवाल पूछ सकता हूँ ?”“ हाँ -हाँ पूछो , क्या पूछना है ?”पिता ने कहा .बेटा - “ पापा , आप एक घंटे मेंकितना कमा लेते हैं ?”“ इससे तुम्हारा क्या लेना देना …तुम ऐसेबेकार केसवाल क्यों कर रहे हो ?” पिता नेझुंझलाते हुए उत्तरदिया .बेटा - “ मैं बस यूँही जानना चाहता हूँ .प्लीसबताइए कि आप एक घंटे में कितना कमातेहैं ?”पिता ने गुस्से से उसकी तरफ देखते हुएकहा , “ 100रुपये .”“अच्छा ”, बेटे ने मासूमियत से सर झुकातेहुए कहा -,“ पापा क्या आप मुझे 50 रूपये उधार देसकते हैं ?”इतना सुनते ही वह व्यक्ति आगबबूला हो उठा , “तो तुम इसीलिए ये फ़ालतू का सवाल कररहे थेताकि मुझसे पैसे लेकर तुम कोई बेकारका खिलौना या उटपटांग चीज खरीदसको ….चुप –चापअपने कमरे में जाओ और सो जाओ….सोचो तुम कितनेखुदगरज हो …मैं दिन रात मेहनत करके पैसेकमाता हूँऔर तुम उसे बेकार की चीजों में बर्वादकरना चाहतेहो ”यह सुन बेटे की आँखों में आंसू आ गए …और वहअपनेकमरे में चला गया .व्यक्ति अभी भी गुस्से में था और सोचरहा था कि आखिर उसके बेटे कि ऐसा करनेकि हिम्मतकैसे हुई ……पर एक -आध घंटा बीतने केबाद वहथोडा शांत हुआ , और सोचनेलगा कि हो सकता हैकि उसके बेटे ने सच -में किसी ज़रूरी कामके लिए पैसेमांगे हों , क्योंकि आज से पहले उसनेकभी इस तरह सेपैसे नहीं मांगे थे .फिर वह उठ कर बेटे के कमरे में गया औरबोला , “क्या तुम सो रहे हो ?”, “नहीं ” जवाबआया .“ मैं सोच रहा था कि शायद मैंने बेकार मेंही तुम्हे डांटदिया , दरअसल दिन भर के काम से मैं बहुतथक गया था .” व्यक्ति ने कहा .“मुज़े माफ करदो.….ये लो अपने पचासरूपये .”ऐसा कहते हुए उसने अपने बेटे के हाथ मेंपचास की नोटरख दी ."सुक्रिया पापा ” बेटा ख़ुशी से पैसे लेतेहुएकहा , और फिर वह तेजी से उठकरअपनी आलमारी की तरफ गया , वहां सेउसने ढेर सारेसिक्के निकाले और धीरे -धीरे उन्हें गिननेलगा .यह देख व्यक्ति फिर से क्रोधित होनेलगा , “ जबतुम्हारे पास पहले से ही पैसे थे तो तुमनेमुझसे औरपैसे क्यों मांगे ?”“ क्योंकि मेरे पास पैसे कम थे , पर अब पूरेहैं ” बेटे नेकहा .“ पापा अब मेरे पास 100 रूपये हैं . क्या मैंआपका एक घंटा खरीद सकता हूँ ? प्लीसआप येपैसे ले लीजिये और कल घर जल्दी आ जाइये ,मैंआपके साथ बैठकरखाना खाना चाहता हूँ .”दोस्तों , इस तेज रफ़्तार जीवन में हम कईबार खुदको इतना व्यस्त कर लेते हैं कि उनलोगो के लिएही समय नहीं निकाल पाते जो हमारेजीवन में सबसेज्यादा महत्व रखते हैं. इसलिए हमें ध्यानरखना होगा कि इस आपा-धापी में भी हमअपने माँ-बाप, जीवन साथी, बच्चों और अभिन्नमित्रों के लिएसमय निकालें, वरना एक दिन हमेंभी अहसासहोगा कि हमने छोटी-मोटी चीजें पाने केलिए कुछ बहुतबड़ा खो दिया.....जय महाकाल....


Friday, November 23, 2012

हमारे महान वैज्ञानिक

हिंदु वेदोंको मान्यता देते हैं और वेदोंमें विज्ञान बताया गया है । केवल सौ वर्षों में पृथ्वीको नष्टप्राय बनाने के मार्ग पर लानेवाले आधुनिक विज्ञान की अपेक्षा, अत्यंत प्रगतिशील एवं एक भी समाज विघातक शोध न करने वाला प्राचीन ‘हिंदु विज्ञान’ था ।

पूर्वकाल के शोधकर्ता हिंदु ऋषियोंकी बुद्धिकी विशालता देखकर आजके वैज्ञानिकों को अत्यंत आश्चर्य होता है । पाश्चात्त्य वैज्ञानिकों की न्यूनता सिद्ध करनेवाला शो

ध सहस्रों वर्ष पूर्व ही करनेवाले हिंदु ऋषि-मुनि ही खरे वैज्ञानिक शोधकर्ता हैं ।

गुरुत्वाकर्षणका गूढ उजागर करनेवाले भास्कराचार्य भास्कराचार्यजी ने अपने (दूसरे) ‘सिद्धांतशिरोमणि’ ग्रंथमें गुरुत्वाकर्षणके विषयमें लिखा है कि, ‘पृथ्वी अपने आकाशका पदार्थ स्व-शक्ति से अपनी ओर खींच लेती हैं । इस कारण आकाश का पदार्थ पृथ्वी पर गिरता है’ । इससे सिद्ध होता है कि, उन्होंने गुरुत्वाकर्षणका शोध न्यूटन से ५०० वर्ष पूर्व लगाया ।

* परमाणुशास्त्रके जनक आचार्य कणाद अणुशास्त्रज्ञ जॉन डाल्टन के २५०० वर्ष पूर्व आचार्य कणादजी ने बताया कि, ‘द्रव्यके परमाणु होते हैं । ’विख्यात इतिहासज्ञ टी.एन्. कोलेबु्रकजीने कहा है कि, ‘अणुशास्त्र में आचार्य कणाद तथा अन्य भारतीय शास्त्रज्ञ युरोपीय शास्त्रज्ञों की तुलना में विश्वविख्यात थे ।’ *

कर्करोग प्रतिबंधित करनेवाला पतंजली ऋषिका योगशास्त्र ‘पतंजली ऋषि द्वारा २१५० वर्ष पूर्व बताया ‘योगशास्त्र’, कर्करोग जैसी दुर्धर व्याधि पर सुपरिणामकारक उपचार है । योगसाधना से कर्करोग प्रतिबंधित होता है ।’ - भारत शासन के ‘अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्था’के (‘एम्स’के) ५ वर्षों के शोधका निष्कर्ष ! *

औषधि-निर्मिति के पितामह : आचार्य चरक इ.स. १०० से २०० वर्ष पूर्व काल के आयुर्वेद विशेषज्ञ चरकाचार्यजी । ‘चरकसंहिता’ प्राचीन आयुर्वेद ग्रंथ के निर्माणकर्ता चरकजी को ‘त्वचा चिकित्सक’ भी कहते हैं । आचार्य चरक ने शरीरशास्त्र, गर्भशास्त्र, रक्ताभिसरणशास्त्र, औषधिशास्त्र इत्यादिके विषयमें अगाध शोध किया था ।

मधुमेह, क्षयरोग, हृदयविकार आदि दुर्धररोगों के निदान एवं औषधोपचार विषयक अमूल्य ज्ञानके किवाड उन्होंने अखिल जगत के लिए खोल दिए । चरकाचार्यजी एवं सुश्रुताचार्यजीने इ.स. पूर्व ५००० में लिखे गए अर्थववेद से ज्ञान प्राप्त करके ३ खंड में आयुर्वेद पर प्रबंध लिखे । *

शल्यकर्म में निपुण महर्षि सुश्रुत ६०० वर्ष ईसापूर्व विश्व के पहले शल्यचिकित्सक (सर्जन) महर्षि सुश्रुत शल्यचिकित्सा के पूर्व अपने उपकरण उबाल लेते थे । आधुनिक विज्ञानने इसका शोध केवल ४०० वर्ष पूर्व किया ! महर्षि सुश्रुत सहित अन्य आयुर्वेदाचार्य त्वचारोपण शल्यचिकित्सा के साथ ही मोतियाबिंद, पथरी, अस्थिभंग इत्यादि के संदर्भ में क्लिष्ट शल्यकर्म करने में निपुण थे । इस प्रकारके शल्यकर्मों का ज्ञान पश्चिमी देशोंने अभी के कुछ वर्षोंमें विकसित किया है ! महर्षि सुश्रुतद्वारा लिखित ‘सुश्रुतसंहिता' ग्रंथमें शल्य चिकित्सा के विषय में विभिन्न पहलू विस्तृतरूप से विशद किए हैं । उसमें चाकू, सुईयां, चिमटे आदि १२५ से भी अधिक शल्यचिकित्सा हेतु आवश्यक उपकरणोंके नाम तथा ३०० प्रकारके शल्यकर्मोंका ज्ञान बताया है । *

नागार्जुन नागार्जुन, ७वीं शताब्दी के आरंभके रसायन शास्त्र के जनक हैं । इनका पारंगत वैज्ञानिक कार्य अविस्मरणीय है । विशेष रूप से सोने धातु पर शोध किया एवं पारेपर उनका संशोधन कार्य अतुलनीय था । उन्होंने पारे पर संपूर्ण अध्ययन कर सतत १२ वर्ष तक संशोधन किया । पश्चिमी देशों में नागार्जुन के पश्चात जो भी प्रयोग हुए उनका मूलभूत आधार नागार्जुन के सिद्धांत के अनुसार ही रखा गया | *

बौद्धयन २५०० वर्ष पूर्व (५०० इ.स.पूर्व) ‘पायथागोरस सिद्धांत’ की खोज करने वाले भारतीय त्रिकोणमितितज्ञ । अनुमानतः २५०० वर्षपूर्व भारतीय त्रिकोणमितिवितज्ञों ने त्रिकोणमितिशास्त्र में महत्त्वपूर्ण शोध किया । विविध आकार-प्रकार की यज्ञवेदियां बनाने की त्रिकोणमितिय रचना-पद्धति बौद्धयन ने खोज निकाली । दो समकोण समभुज चौकोन के क्षेत्रफलों का योग करनेपर जो संख्या आएगी उतने क्षेत्रफल का ‘समकोण’ समभुज चौकोन बनाना और उस आकृति का उसके क्षेत्रफल के समान के वृत्तमें परिवर्तन करना, इस प्रकारके अनेक कठिन प्रश्नों को बौद्धयन ने सुलझाया | *

ऋषि भारद्वाज राइट बंधुओंसे २५०० वर्ष पूर्व वायुयान की खोज करनेवाले भारद्वाज ऋषि ! आचार्य भारद्वाजजीने ६०० वर्ष इ.स.पूर्व विमानशास्त्र के संदर्भ में महत्त्वपूर्ण संशोधन किया । एक ग्रह से दूसरे ग्रह पर उडान भरनेवाले, एक विश्वसे दूसरे विश्व उडान भरने वाले वायुयान की खोज, साथ ही वायुयान को अदृश्य कर देना इस प्रकार का विचार पश्चिमी शोधकर्ता भी नहीं कर सकते । यह खोज आचार्य भारद्वाजजी ने कर दिखाया । पश्चिमी वैज्ञानिकोंको महत्वहीन सिद्ध करनेवाले खोज, हमारे ऋषि-मुनियोंने सहस्त्रों वर्ष पूर्व ही कर दिखाया था । वे ही सच्चे शोधकर्ता हैं । *

गर्ग मुनि कौरव-पांडव काल में तारों के जगत के विशेषज्ञ गर्गमुनिजी ने नक्षत्रों की खोज की । गर्गमुनिजी ने श्रीकृष्ण एवं अर्जुन के जीवन के संदर्भ में जो कुछ भी बताया वह शत प्रतिशत सत्य सिद्ध हुआ । कौरव-पांडवों का भारतीय युद्ध मानव संहारक रहा, क्योंकि युद्धके प्रथम पक्षमें तिथि क्षय होनेके तेरहवें दिन अमावस थी । इसके द्वितीय पक्षमें भी तिथि क्षय थी । पूर्णिमा चौदहवें दिन पड गई एवं उसी दिन चंद्रग्रहण था, यही घोषणा गर्गमुनिजी ने भी की थी । ।। जयतु संस्‍कृतम् । जयतु भारतम् ।।

Monday, November 19, 2012

बालासाहेब केशव ठाकरे संक्षिप्त जीवन


शिव सेना के संस्थापक और अध्यक्ष
जन्म२३ जनवरी १९२६
पुणे, बंबई प्रेसीडेंसी
मृत्यु१७ नवम्बर २०१२
मुंबई
राजनैतिक पार्टीशिव सेना
जीवन संगीमीना ठाकरे
संतानबिन्दु माधव ठाकरे, जयदेव ठाकरे,
उद्धव ठाकरे
आवासमुंबई, भारत


बालासाहेब केशव ठाकरे (२३ जनवरी १९२६ - १७ नवम्बर २०१२) भारत के महाराष्ट्र प्रदेश के प्रसिद्ध राजनेता थे जिन्होने शिव सेना के नाम से एक प्रखर हिन्दू राष्ट्रवादी दल का गठन किया था। उन्हें लोग प्यार से बालासाहेब भी कहते थे। वे मराठी में सामना नामक अखबार निकालते थे। इस अखबार में उन्होंने अपनी मृत्यु से कुछ दिन पूर्व अपने सम्पादकीय में लिखा था - "आजकल मेरी हालत चिन्ताजनक है किन्तु मेरे देश की हालत मुझसे अधिक चिन्ताजनक है; ऐसे में भला मैं चुप कैसे बैठ सकता हूँ?"
उनके अनुयायी उन्हें हिन्दू हृदय सम्राट कहते थे। 
ठाकरे ने अपने जीवन का सफर एक कार्टूनिस्ट के रूप में शुरू किया था। पहले वे अंग्रेजी अखबारों के लिये कार्टून बनाते थे। बाद में उन्होंने सन १९६० में मार्मिक के नाम से अपना एक स्वतन्त्र साप्ताहिक अखबार निकाला और अपने पिता केशव सीताराम ठाकरे के राजनीतिक दर्शन को महाराष्ट्र में प्रचारित व प्रसारित किया। इस नये साप्ताहिक पत्र के माध्यम से उन्होंने मुंबई में रहने वाले गुजराती, मारवाड़ी और दक्षिण भारतीय लोगों के बीच अपनी मजबूत पैठ बनायी। सन १९६६ में उन्होंने शिव सेना की स्थापना की।
मराठी भाषा में सामना के अतिरिक्त उन्होंने हिन्दी भाषा में दोपहर का सामना नामक अखबार भी निकाला। इस प्रकार महाराष्ट्र में हिन्दी व मराठी में दो-दो प्रमुख अखबारों के संस्थापक बाला साहब ही थे। खरी-खरी बात कहने और विवादास्पद बयानों के कारण वे मृत्यु पर्यन्त अखबार की सुर्खियों में बराबर बने रहे।
१७ नवम्बर २०१२ को मुम्बई में अपने मातुश्री आवास पर दोपहर बाद ३ बजकर ३३ मिनट पर उन्होंने अन्तिम साँस ली।

संक्षिप्त जीवन

बालासाहेब का जन्म २३ जनवरी १९२६ को पुणे में केशव सीताराम ठाकरे के यहाँ हुआ था।उनके पिता केशव सीताराम मराठी चन्द्रसेनीय कायस्थ परिवार से थे। वे एक प्रगतिशील सामाजिक कार्यकर्ता व लेखक थे जो जातिप्रथा के धुर विरोधी थे। उन्होंने महाराष्ट्र में मराठी भाषी लोगों को संगठित करने के लिये संयुक्त मराठी चालवाल (आन्दोलन) में प्रमुख भूमिका निभायी और बम्बई को महाराष्ट्र की राजधानी बनाने में१९५० के दशक में काफी काम किया।
बालासाहेब का विवाह मीना ठाकरे से हुआ। उनसे उनके तीन बेटे हुए - बिन्दुमाधव, जयदेव और उद्धव ठाकरे। उनकी पत्नी मीना और सबसे बड़े पुत्र बिन्दुमाधव का १९९६ में निधन हो गया।
बतौर आजीविका उन्होंने अपना जीवन बम्बई के प्रसिद्ध समाचारपत्र फ्री प्रेस जर्नल में कार्टूनिस्ट के रूप में प्रारम्भ किया। इसके बाद उन्होंने फ्री प्रेस जर्नल की नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और १९६० में अपने भाई के साथ एक कार्टून साप्ताहिक मार्मिक की शुरुआत की। 

[संपादित करें]राजनीतिक जीवन

१९६६ में उन्होंने महाराष्ट्र में शिव सेना नामक एक कट्टर हिन्दूराष्ट्र वादी संगठन की स्थापना की। हालांकि शुरुआती दौर में बाल ठाकरे को अपेक्षित सफलता नहीं मिली लेकिन अपनी उम्र के अन्तिम दौर में उन्होंने शिव सेना को सत्ता की सीढ़ियों पर पहुँचा ही दिया।

१९९५ में भाजपा-शिवसेना के गठबन्धन ने महाराष्ट्र में अपनी सरकार बनाई। हालांकि २००५ में उनके बेटे उद्धव ठाकरे को अतिरिक्त महत्व दिये जाने से नाराज उनके भतीजेराज ठाकरे ने शिवसेना छोड़ दी और २००६ में अपनी नई पार्टी 'महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना' बना ली। बाल ठाकरे अपने उत्तेजित करने वाले बयानों के लिये जाने जाते थे और इसके कारण उनके खिलाफ सैकड़ों की संख्या में मुकदमे दर्ज किये गये थे।

[संपादित करें]बाल ठाकरे के बारे में कुछ अनभिज्ञ बातें

  • बाला साहेब ने बॉलीवुड के कई लोगो को दाउद इब्राहिम के आतंक से बचाया था। दाउद के कारण पूरे बॉलीवुड का काम बन्द हो रहा था इसकी गुहार लेकर बॉलीवुड की कई प्रमुख हस्तियाँ उनके निवास मातुश्री मिलने गयीं थीं उनमें सलीम खान परिवार भी शामिल था।
  • दाउद इब्राहिम को पुलिस का खौफ नहीं था लेकिन बाल ठाकरे का खौफ था।
  • बाला साहेब ने लाखों कश्मीरी पण्डितों की शिक्षा का खर्च भी उठाया था। जब आतंकवादियों ने कश्मीरी पण्डितों की बेरहमी से न्रशंस हत्या कर दी थी और सारा देश चुप था तब बाला साहब ही थे जो उनकी मदद के लिये खुलकर सामने आये।
  • अमिताभ बच्चन को नेहरू-गान्धी परिवार ने बोफोर्स घोटाले में फँसा दिया था। बाल ठाकरे ने अमिताभ से पूछा - "आप दोषी हैं?" बच्चन ने उत्तर दिया - "नहीं।" तब बाला साहेब ने उनसे कहा था -"आप एक अभिनेता हैं जाइये अपना काम कीजिये। आपको कुछ नहीं होगा।" चूँकि अमिताभ बच्चन को उन्होंने जेल जाने से बचाया था इसलिये अमिताभ बच्चन बाला साहेब की तबियत बिगड़ने पर सबसे पहले मातुश्री उन्हें देखने गये।
  • १९९३ के दंगो में जब मुसलमानों ने मुंबई के सभी हिन्दुओं को मारने की कसम खाई थी तब बाला साहेब ने कई दबंग और गुण्डे मुसलमानों का कत्ल करवा दिया था। इस कारण देश का मुस्लिम समुदाय उनका विरोधी हो गया।
  • १९९९ में बाला साहेब ने कहा था कि वे सभी मुस्लिमों के विरोधी नहीं हैं। सिर्फ जिहादी,पाकिस्तान परस्त और देशद्रोही मुस्लिमों के ही विरोधी हैं।
  • शायद इसीलिये शाहरुख खान से उनकी दुश्मनी थी और सभी शिवसैनिकों की अभी भी है। क्योंकि शाहरुख़ खान ने दुबई में स्टेज शो करके पाकिस्तान के आतंकवादी संगठनो को धन मुहैय्या करवाया था। शाहरुख खान अभी भी अमेरिकी और इजरायली खुफिया एजेंसियों के राडार पर है। इसलिए शाहरुख खान को अमेरिका में दो बार नंगा किया गया।
  • १४ फरवरी २००६ को वैलेंटाइन डे पर शिवसैनिकों द्वारा नाला सोपारा में एक महिला पर हाथ उठाये जाने पर बाल ठाकरे ने इसकी खुलकर भर्त्सना की और शिवसैनिकों की ओर से खुद माफ़ी माँगी। इतना ही नहीं उन्होंने सामना में लिखा - "मैंने शिवसैनिकों को कहा है कि किसी भी स्थिति में महिलाओं को हानि नहीं होनी चाहिये। माहिलाओं को मारना कायरता का प्रतीक है।"
  • छोटा शकील और दाउद इब्राहिम के जमाने में पुलिस अधिकारी तक मदद के लिये बाला साहेब के पास ही जाते थे। दाउद और छोटा शकील को बाला साहेब ने ही भारत से पाकिस्तान भागने पर मजबूर कर दिया था। और किसी में यह दम भी नहीं था।

[संपादित करें]खराब स्वास्थ्य और मृत्यु

बाला साहेब को उनके निरन्तर खराब हो रहे स्वास्थ्य के चलते साँस लेने में कठिनाई के कारण २५ जुलाई २०१२ को मुम्बई के लीलावती अस्पताल में भर्ती किया गया। १४ नवम्बर २०१२ को जारी बुलेटिन के अनुसार जब उन्होंने खाना पीना भी त्याग दिया तो उन्हें अस्पताल से छुट्टी दिलाकर उनके निवास पर ले आया गया और घर पर ही सारी चिकित्सकीय सुविधायें जुटाकर केवल प्राणवायु (ऑक्सीजन) के सहारे जिन्दा रखने का प्रयास किया गया।  उनके चिन्ताजनक स्वास्थ्य की खबर मिलते ही उनके समर्थकों व प्रियजनों ने उनके मातुश्री आवास पर, जहाँ अन्तिम समय में उन्हें चिकित्सकों की देखरेख में रखा गया था, पहुँचना प्रारम्भ कर दिया।
तमाम प्रयासों, दवाओं व दुआओं के वावजूद उन्हें बचाया नहीं जा सका और अखिरकार उनकी आत्मा ने १७ नवम्बर २०१२ को शरीर त्याग दिया। चिकित्सकों के अनुसार उनकी मृत्यु हृदय-गति के बन्द हो जाने से हुई।
भारत के प्रधानमन्त्री डॉ० मनमोहन सिंह ने उनकी मृत्यु पर भेजे शोक-सन्देश में कहा - "महाराष्ट्र की राजनीति में बाला साहेब ठाकरे का योगदान अतुलनीय था। उसे भुलाया नहीं जा सकता।" लोक सभा में प्रतिपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने भी उनके निधन पर गहरा दुख प्रकट किया। 
उनकी शव यात्रा में एक रिपोर्ट के मुताबिक २० लाख लोग शामिल हुए जिनमें नेता, अभिनेता, व्यवसायी वर्ग के अलावा हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख व ईसाई - सभी समुदायों के लोग थे। शिवाजी मैदान पर पूरे राजकीय सम्मान के साथ उनकी अंत्येष्टि की गयी। इस अवसर पर लालकृष्ण आडवानी, सुषमा स्वराज, अरुण जेटली , नितिन गडकरी,मेनका गांधी, प्रफुल्ल पटेल और शरद पवार के अतिरिक्त अमिताभ बच्चन, अनिल अंबानी भी मौजूद थे।

Sunday, November 11, 2012

Spirit of Hinduism : The Mahamrityunjaya Mantra


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ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम् पुष्टिवर्धनम् ।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय माम्रतात् ।।
- The Rig Veda (7.59.12)

Transliteration :
Om tryambakaṃ yajāmahe sugandhiṃ puṣṭi-vardhanam ।
urvārukam iva bandhanān mṛtyormukṣīya māmṛtāt ।।

Meaning :
OM. We worship and adore you, O three-eyed one, O Shiva. You are sweet gladness, the fragrance of life, who nourishes us, restores our health, and causes us to thrive. As, in due time, the stem of the cucumber weakens, and the gourd if freed from the vine, so free us from attachment and death, and do not withhold immortality.

दीपावली पूजन विधि


कार्तिक मास की अमावस्या का दिन दीपावली के रूप में पूरे देश में बडी धूम-धाम से मनाया जाता हैं। इसे रोशनी का पर्व भी कहा जाता है।
कहा जाता है कि कार्तिक अमावस्या को भगवान रामचन्द्र जी चौदह वर्ष का बनवास पूरा कर अयोध्या लौटे थे। अयोध्या वासियों ने श्री रामचन्द्र के लौटने की खुशी में दीप जलाकर खुशियाँ मनायी थीं, इसी याद में आज तक दीपावली पर दीपक जलाए जाते हैं और कहते हैं कि इसी दिन महाराजा विक्रमादित्य का राजतिलक भी हुआ था। आज के दिन व्यापारी अपने बही खाते बदलते है तथा लाभ हानि का ब्यौरा तैयार करते हैं।  दीपावली पर जुआ खेलने की भी प्रथा हैं। इसका प्रधान लक्ष्य वर्ष भर में भाग्य की परीक्षा करना है। लोग जुआ खेलकर यह पता लगाते हैं कि उनका पूरा साल कैसा रहेगा।
पूजन विधानः दीपावली पर माँ लक्ष्मी व गणेश के साथ सरस्वती मैया की भी पूजा की जाती है। भारत मे दीपावली परम्प   रम्पराओं का त्यौंहार है। पूरी परम्परा व श्रद्धा के साथ दीपावली का पूजन किया जाता है। इस दिन लक्ष्मी पूजन में माँ लक्ष्मी की प्रतिमा या चित्र की पूजा की जाती है। इसी तरह लक्ष्मी जी का पाना भी बाजार में मिलता है जिसकी परम्परागत पूजा की जानी अनिवार्य है। गणेश पूजन के बिना कोई भी पूजन अधूरा होता है इसलिए लक्ष्मी के साथ गणेश पूजन भी किया जाता है। सरस्वती की पूजा का कारण यह है कि धन व सिद्धि के साथ ज्ञान भी पूजनीय है इसलिए ज्ञान की पूजा के लिए माँ सरस्वती की पूजा की जाती है।
इस दिन धन व लक्ष्मी की पूजा के रूप में लोग लक्ष्मी पूजा में नोटों की गड्डी व चाँदी के सिक्के भी रखते हैं। इस दिन रंगोली सजाकर माँ लक्ष्मी को खुश किया जाता है। इस दिन धन के देवता कुबेर, इन्द्र देव तथा समस्त मनोरथों को पूरा करने वाले विष्णु भगवान की भी पूजा की जाती है। तथा रंगोली सफेद व लाल मिट्टी से बनाकर व रंग बिरंगे रंगों से सजाकर बनाई जाती है।
विधिः दीपावली के दिन दीपकों की पूजा का विशेष महत्व हैं। इसके लिए दो थालों में दीपक रखें। छः चौमुखे दीपक दोनो थालों में रखें। छब्बीस छोटे दीपक भी दोनो थालों में सजायें। इन सब दीपको को प्रज्जवलित करके जल, रोली, खील बताशे, चावल, गुड, अबीर, गुलाल, धूप, आदि से पूजन करें और टीका लगावें। व्यापारी लोग दुकान की गद्दी पर गणेश लक्ष्मी की प्रतिमा रखकर पूजा करें। इसके बाद घर आकर पूजन करें। पहले पुरूष फिर स्त्रियाँ पूजन करें। स्त्रियाँ चावलों का बायना निकालकर कर उस रूपये रखकर अपनी सास के चरण स्पर्श करके उन्हें दे दें तथा आशीवार्द प्राप्त करें। पूजा करने के बाद दीपकों को घर में जगह-जगह पर रखें। एक चौमुखा, छः छोटे दीपक  गणेश लक्ष्मीजी के पास रख दें। चौमुखा दीपक का काजल सब बडे बुढे बच्चे अपनी आँखो में डालें।

दीपावली पूजन कैसे करें

प्रातः स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
अब निम्न संकल्प से दिनभर उपवास रहें-
मम सर्वापच्छांतिपूर्वकदीर्घायुष्यबलपुष्टिनैरुज्यादि-
सकलशुभफल प्राप्त्यर्थं
गजतुरगरथराज्यैश्वर्यादिसकलसम्पदामुत्तरोत्तराभिवृद्ध्‌यर्थं
इंद्रकुबेरसहितश्रीलक्ष्मीपूजनं करिष्ये।

संध्या के समय पुनः स्नान करें।
लक्ष्मीजी के स्वागत की तैयारी में घर की सफाई करके दीवार को चूने अथवा गेरू से पोतकर लक्ष्मीजी का चित्र बनाएं। (लक्ष्मीजी का छायाचित्र भी लगाया जा सकता है।)
भोजन में स्वादिष्ट व्यंजन, कदली फल, पापड़ तथा अनेक प्रकार की मिठाइयाँ बनाएं।
लक्ष्मीजी के चित्र के सामने एक चौकी रखकर उस पर मौली बाँधें।
इस पर गणेशजी की मिट्टी की मूर्ति स्थापित करें।
फिर गणेशजी को तिलक कर पूजा करें।
अब चौकी पर छः चौमुखे व 26 छोटे दीपक रखें।
इनमें तेल-बत्ती डालकर जलाएं।
फिर जल, मौली, चावल, फल, गुढ़, अबीर, गुलाल, धूप आदि से विधिवत पूजन करें।
पूजा पहले पुरुष तथा बाद में स्त्रियां करें।
पूजा के बाद एक-एक दीपक घर के कोनों में जलाकर रखें।
एक छोटा तथा एक चौमुखा दीपक रखकर निम्न मंत्र से लक्ष्मीजी का पूजन करें-

नमस्ते सर्वदेवानां वरदासि हरेः प्रिया।
या गतिस्त्वत्प्रपन्नानां सा मे भूयात्वदर्चनात॥

इस मंत्र से इंद्र का ध्यान करें-
ऐरावतसमारूढो वज्रहस्तो महाबलः।
शतयज्ञाधिपो देवस्तमा इंद्राय ते नमः॥

इस मंत्र से कुबेर का ध्यान करें-
धनदाय नमस्तुभ्यं निधिपद्माधिपाय च।
भवंतु त्वत्प्रसादान्मे धनधान्यादिसम्पदः॥

इस पूजन के पश्चात तिजोरी में गणेशजी तथा लक्ष्मीजी की मूर्ति रखकर विधिवत पूजा करें।
तत्पश्चात इच्छानुसार घर की बहू-बेटियों को आशीष और उपहार दें।
लक्ष्मी पूजन रात के बारह बजे करने का विशेष महत्व है।
इसके लिए एक पाट पर लाल कपड़ा बिछाकर उस पर एक जोड़ी लक्ष्मी तथा गणेशजी की मूर्ति रखें। समीप ही एक सौ एक रुपए, सवा सेर चावल, गुढ़, चार केले, मूली, हरी ग्वार की फली तथा पाँच लड्डू रखकर लक्ष्मी-गणेश का पूजन करें।
उन्हें लड्डुओं से भोग लगाएँ।
दीपकों का काजल सभी स्त्री-पुरुष आँखों में लगाएं।
फिर रात्रि जागरण कर गोपाल सहस्रनाम पाठ करें।
इस दिन घर में बिल्ली आए तो उसे भगाएँ नहीं।
बड़े-बुजुर्गों के चरणों की वंदना करें।
व्यावसायिक प्रतिष्ठान, गद्दी की भी विधिपूर्वक पूजा करें।
रात को बारह बजे दीपावली पूजन के उपरान्त चूने या गेरू में रुई भिगोकर चक्की, चूल्हा, सिल्ल, लोढ़ा तथा छाज (सूप) पर कंकू से तिलक  करें। (हालांकि आजकल घरों मे ये सभी चीजें मौजूद नहीं है लेकिन भारत के गाँवों में और छोटे कस्बों में आज भी इन सभी चीजों का विशेष महत्व है क्योंकि जीवन और भोजन का आधार ये ही हैं)
दूसरे दिन प्रातःकाल चार बजे उठकर पुराने छाज में कूड़ा रखकर उसे दूर फेंकने के लिए ले जाते समय कहें 'लक्ष्मी-लक्ष्मी आओ, दरिद्र-दरिद्र जाओ'।
लक्ष्मी पूजन के बाद अपने घर के तुलसी के गमले में, पौधों के गमलों में घर के आसपास मौजूद पेड़ के पास दीपक रखें और  अपने पड़ोसियों के घर भी दीपक रखकर आएं।

मंत्र-पुष्पांजलि :
( अपने हाथों में पुष्प लेकर निम्न मंत्रों को बोलें) :-
ॐ यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्‌ ।
तेह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः ॥
ॐ राजाधिराजाय प्रसह्य साहिने नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे ।
स मे कामान्‌ कामकामाय मह्यं कामेश्वरो वैश्रवणो ददातु ॥
कुबेराय वैश्रवणाय महाराजाय नमः ।
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, मंत्रपुष्पांजलिं समर्पयामि ।
(हाथ में लिए फूल महालक्ष्मी पर चढ़ा दें।)
प्रदक्षिणा करें, साष्टांग प्रणाम करें, अब हाथ जोड़कर निम्न क्षमा प्रार्थना बोलें :-

क्षमा प्रार्थना :
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्‌ ॥
पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वरि ॥
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि ।
यत्पूजितं मया देवि परिपूर्ण तदस्तु मे ॥
त्वमेव माता च पिता त्वमेव
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव ।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव
त्वमेव सर्वम्‌ मम देवदेव ।
पापोऽहं पापकर्माहं पापात्मा पापसम्भवः ।
त्राहि माम्‌ परमेशानि सर्वपापहरा भव ॥
अपराधसहस्राणि क्रियन्तेऽहर्निशं मया ।
दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरि ॥

पूजन समर्पण :
हाथ में जल लेकर निम्न मंत्र बोलें :-
'ॐ अनेन यथाशक्ति अर्चनेन श्री महालक्ष्मीः प्रसीदतुः'
(जल छोड़ दें, प्रणाम करें)

विसर्जन :
अब हाथ में अक्षत लें (गणेश एवं महालक्ष्मी की प्रतिमा को छोड़कर अन्य सभी) प्रतिष्ठित देवताओं को अक्षत छोड़ते हुए निम्न मंत्र से विसर्जन कर्म करें :-

यान्तु देवगणाः सर्वे पूजामादाय मामकीम्‌ ।
इष्टकामसमृद्धयर्थं पुनर्अपि पुनरागमनाय च ॥

ॐ आनंद ! ॐ आनंद !! ॐ आनंद !!!
ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता ।
तुमको निसदिन सेवत हर-विष्णु-धाता ॥ॐ जय...
उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता ।
सूर्य-चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता ॥ॐ जय...
तुम पाताल-निरंजनि, सुख-सम्पत्ति-दाता ।
जोकोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि-सिद्धि-धन पाता ॥ॐ जय...
तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता ।
कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनि, भवनिधि की त्राता ॥ॐ जय...
जिस घर तुम रहती, तहँ सब सद्गुण आता ।
सब सम्भव हो जाता, मन नहिं घबराता ॥ॐ जय...
तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न हो पाता ।
खान-पान का वैभव सब तुमसे आता ॥ॐ जय...
शुभ-गुण-मंदिर सुन्दर, क्षीरोदधि-जाता ।
रत्न चतुर्दश तुम बिन कोई नहिं पाता ॥ॐ जय...
महालक्ष्मीजी की आरती, जो कई नर गाता ।
उर आनन्द समाता, पाप शमन हो जाता ॥ॐ जय...
(आरती करके शीतलीकरण हेतु जल छोड़ें एवं स्वयं आरती लें, पूजा में सम्मिलित सभी लोगों को आरती दें फिर हाथ धो लें।)
परमात्मा की पूजा में सबसे ज्यादा महत्व है भाव का, किसी भी शास्त्र या धार्मिक पुस्तक में पूजा के साथ धन-संपत्ति को नहीं जो़ड़ा गया है। इस श्लोक में पूजा के महत्व को दर्शाया गया है-
'पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति।
तदहं भक्त्यु पहृतमश्नामि प्रयतात्मनः॥'
पूज्य पांडुरंग शास्त्री अठवलेजी महाराज ने इस श्लोक की व्याख्या इस तरह से की है
'पत्र, पुष्प, फल या जल जो मुझे (ईश्वर को) भक्तिपूर्वक अर्पण करता है, उस शुद्ध चित्त वाले भक्त के अर्पण किए हुए पदार्थ को मैं ग्रहण करता हूँ।'
भावना से अर्पण की हुई अल्प वस्तु को भी भगवान सहर्ष स्वीकार करते हैं। पूजा में वस्तु का नहीं, भाव का महत्व है।
परंतु मानव जब इतनी भावावस्था में न रहकर विचारशील जागृत भूमिका पर होता है, तब भी उसे लगता है कि प्रभु पर केवल पत्र, पुष्प, फल या जल चढ़ाना सच्चा पूजन नहीं है। ये सभी तो सच्चे पूजन में क्या-क्या होना चाहिए, यह समझाने वाले प्रतीक हैं।
पत्र यानी पत्ता। भगवान भोग के नहीं, भाव के भूखे हैं। भगवान शिवजी बिल्व पत्र से प्रसन्न होते हैं, गणपति दूर्वा को स्नेह से स्वीकारते हैं और तुलसी नारायण-प्रिया हैं! अल्प मूल्य की वस्तुएं भी हृदयपूर्वक भगवद् चरणों में अर्पण की जाए तो वे अमूल्य बन जाती हैं। पूजा हृदयपूर्वक होनी चाहिए, ऐसा सूचित करने के लिए ही तो नागवल्ली के हृदयाकार पत्ते का पूजा सामग्री में समावेश नहीं किया गया होगा न!
पत्र यानी वेद-ज्ञान, ऐसा अर्थ तो गीताकार ने खुद ही 'छन्दांसि यस्य पर्णानि' कहकर किया है। भगवान को कुछ दिया जाए वह ज्ञानपूर्वक, समझपूर्वक या वेदशास्त्र की आज्ञानुसार दिया जाए, ऐसा यहां अपेक्षित है। संक्षेप में पूजन के पीछे का अपेक्षित मंत्र ध्यान में रखकर पूजन करना चाहिए। मंत्रशून्य पूजा केवल एक बाह्य यांत्रिक क्रिया बनी रहती है, जिसकी नीरसता ऊब निर्माण करके मानव को थका देती है। इतना ही नहीं, आगे चलकर इस पूजाकांड के लिए मानवके मन में एक प्रकार की अरुचि भी निर्माण होती है।

Wednesday, October 31, 2012

लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल जयंती ३१ अक्टूबर


सरदार वल्लभभाई पटेल राष्ट्रीय एकता के अदभुत शिल्पी थे जिनके ह्रदय में भारत बसता था। वास्तव में वे भारतीय जनमानस अर्थात किसान की आत्मा थे। स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी एवं स्वतन्त्र भारत के प्रथम गृहमंत्री सरदार पटेल बर्फ से ढंके एक ज्वालामुखी थे। वे नवीन भारत के निर्माता थे। उन्हे भारत का ‘लौह पुरूष भी कहा जाता है।
स्वतन्त्रता आन्दोलन में सरदार पटेल का सबसे पहला और बडा योगदान खेडा संघर्ष में हुआ। गुजरात का खेडा खण्ड(डिविजन) उन दिनो भयंकर सूखे की चपेट में था। किसानों ने अंग्रेज सरकार से भारी कर में छूट की मांग की। जब यह स्वीकार नहीं किया गया तो सरदार पटेल ने किसानों का नेतृत्व किया और उन्हे कर न देने के लिये प्रेरित किया। अन्त में सरकार झुकी और उस वर्ष करों में राहत दी गयी। यह सरदार पटेल की पहली सफलता थी।
देशी रीयासतों को भारत में मिलाने का साहसिक कार्य सरदार पटेल के प्रयासों से ही संभव हो सका। जब पन्द्रह अगस्त उन्नीस सौ सैंतालीस को भारत परतन्त्रता की बेड़ियों से आजाद हुआ तो उस समय लगभग 562 देशी रियासतें थीं, जिन पर ब्रिटिश सरकार का हुकूमत नहीं था। उनमें से जूनागढ़, हैदराबाद और कश्मीर को छोडक़र अधिकतर रियासतों ने स्वेज्छा से भारत में अपने विलय की स्वीकृति दे दी। जूनागढ़ का नवाब जूनागढ़ का विलय पाकिस्तान में चाहता था। नवाब के इस निर्णय के कारण जूनागढ़ में जन विद्रोह हो गया जिसके परिणाम स्वरूप नवाब को पाकिस्तान भाग जाना पड़ा और जूनागढ़ पर भारत का अधिकार हो गया। हैदराबाद का निजाम हैदराबाद स्टेट को एक स्वतन्त्र देश का रूप देना चाहता था इसलिए उसने भारत में हैदराबाद के विलय कि स्वीकृति नहीं दी। यद्यपि भारत को 15 अगस्त 1947 के दिन स्वतन्त्रता मिल चुकी थी किन्तु 18 सितम्बर 1948 तक, हैदराबाद भारत से अलग ही रहा। इस पर तत्कालीन गृह मन्त्री सरदार पटेल ने हैदराबाद के नवाब की हेकड़ी दूर करने के लिए 13 सितम्बर 1948 को सैन्य कार्यवाही आरम्भ की जिसका नाम ‘ऑपरेशन पोलो’ रखा गया था। भारत की सेना के समक्ष निजाम की सेना टिक नहीं सकी और उन्होंने 18 सितम्बर 1948 को समर्पण कर दिया। हैदराबाद के निजाम को विवश होकर भारतीय संघ में शामिल होना पड़ा।
नि:संदेह सरदार पटेल द्वारा यह 562 रियासतों का एकीकरण विश्व इतिहास का एक आश्चर्य था क्योंकि भारत की यह रक्तहीन क्रांति थी।  गाँधी जी ने सरदार पटेल को इन रियासतों के बारे में लिखा था, “रियासतों की समस्या इतनी जटिल थी जिसे केवल तुम ही हल कर सकते थे।” ये कहना अतिश्योक्ती न होगी कि यदि काश्मीर का निर्णय नेहरू जी के बजाय पटेल के हाथ मे होता तो आज भारत में काश्मीर समस्या जैसी कोई समस्या नहीं होती।
भारतीय नागरिक सेवाओं (आई.सी.एस.) का भारतीयकरण कर इसे भारतीय प्रशासनिक सेवाएं (आई.ए.एस.) में परिवर्तित करना सरदार पटेल के प्रयासो का ही परिणाम है। यदि सरदार पटेल को कुछ समय और मिलता तो संभवत: नौकरशाही का पूर्ण कायाकल्प हो जाता। उनके मन में किसानो एवं मजदूरों के लिये असीम श्रद्धा थी। वल्लभभाई पटेल ने किसानों एवं मजदूरों की कठिनाइयों पर अन्तर्वेदना प्रकट करते हुए कहा:-
 ” दुनिया का आधार किसान और मजदूर पर हैं। फिर भी सबसे ज्यादा जुल्म कोई सहता है, तो यह दोनों ही सहते हैं। क्योंकि ये दोनों बेजुबान होकर अत्याचार सहन करते हैं। मैं किसान हूँ, किसानों के दिल में घुस सकता हूँ, इसलिए उन्हें समझता हूँ कि उनके दुख का कारण यही है कि वे हताश हो गये हैं। और यह मानने लगे हैं कि इतनी बड़ी हुकूमत के विरुद्ध क्या हो सकता है ? सरकार के नाम पर एक चपरासी आकर उन्हें धमका जाता है, गालियाँ दे जाता है और बेगार करा लेता है। “
किसानों की दयनीय स्थिति से वे कितने दुखी थे इसका वर्णन करते हुए पटेल ने कहा: -
“किसान डरकर दुख उठाए और जालिम की लातें खाये, इससे मुझे शर्म आती है और मैं सोचता हूँ कि किसानों को गरीब और कमजोर न रहने देकर सीधे खड़े करूँ और ऊँचा सिर करके चलने वाला बना दूँ। इतना करके मरूँगा तो अपना जीवन सफल समझूँगा”
कहते हैं कि यदि सरदार बल्लभ भाई पटेल ने जिद्द नहीं की होती तो ‘रणछोड़’ राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रपति पद के लिए तैयार ही नहीं होते। जब सरदार वल्‍लभभाई पटेल अहमदाबाद म्‍युनिसिपेलिटी के अध्‍यक्ष थे तब उन्‍होंने बाल गंगाघर तिलक का बुत अहमदाबाद के विक्‍टोरिया गार्डन में विक्‍टोरिया के स्‍तूप के समान्‍तर लगवाया था। जिस पर गाँधी जी ने कहा था कि- “सरदार पटेल के आने के साथ ही अहमदाबाद म्‍युनिसिपेलिटी में एक नयी ताकत आयी है। मैं सरदार पटेल को तिलक का बुत स्‍थापित करने की हिम्‍मत बताने के लिये उन्हे अभिनन्‍दन देता हूं।”
भारत के राष्ट्रीय स्वतन्त्रता संग्राम में अक्षम शक्ति स्तम्भ थे। आत्म-त्याग, अनवरत सेवा तथा दूसरों को दिव्य-शक्ति की चेतना देने वाला उनका जीवन सदैव प्रकाश-स्तम्भ की अमर ज्योति रहेगा। सरदार पटेल मितभाषी, अनुशासनप्रिय और कर्मठ व्यक्ति थे। उनके व्यक्तित्व में विस्मार्क जैसी संगठन कुशलता, कौटिल्य जैसी राजनीतिक सत्ता तथा राष्ट्रीय एकता के प्रति अब्राहम लिंकन जैसी अटूट निष्ठा थी। अपने अदम्य उत्साह, असीम शक्ति एवं मानवीय समस्याओं के प्रति व्यवहारिक दृष्टिकोण से उन्होंने निर्भय होकर स्वतंत्र राष्ट्र की प्रारम्भिक कठिनाइयों का समाधान अद्भुत सफलता से किया। राष्ट्र के प्रति प्रेम एवं योगदान के ही कारण आज विश्व के श्रेष्ठ राजनीतिज्ञों की श्रेणी में सरदार पटेल को भी याद किया जाता है। विश्व मानचित्र में उनका अमिट स्थान है।
सरदार पटेल मन, वचन तथा कर्म से एक सच्चे देशभक्त थे। वे वर्ण-भेद तथा वर्ग-भेद के कट्टर विरोघी थे। वे अन्तःकरण से निर्भीक थे। अपूर्व संगठन-शक्ति एवं शीघ्र निर्णय लेने की क्षमता रखने वाले सरदार पटेल, आज भी युवा पीढी के लिये प्रेरणा स्रोत हैं। कर्म और संघर्ष को वे जीवन का ही एक रूप समझते थे।
भारत के देशभक्तों में एक अमूल्य रत्न सरदार पटेल को भारत सरकार ने सन १९९१ में ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया आज सरदार वल्लभ भाई पटेल हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उन्हें हमेशा याद किया जाता रहेगा। ३१ अक्टूबर, उनकी जयंती पर अपनी भावांजली के साथ शत् शत् नमन करते हैं।

Saturday, October 20, 2012

An Interview with Modi!!

An Interview with Modi!!

राहुल कंवल – आपके आलोचक ये कहते हैं कि जब सुप्रीम कोर्ट ने आपको निर्दोष पाते हुए आपके पक्ष में फैसला किया तो आपने एक ट्विट किया था कि ‘’ ईश्वर महान है ‘’ और बीजपी ने ये कहा कि अब नरेंद्र मोदी सारे आरोपों से बरी हो गए

नरेंद्र मोदी – अच्छा मुझे ये बताइए कि अब किसी कोर्ट में या पुलिस थाने में मोदी पर क्या आरोप बचा है ,जरा प्लीज़ बताइए




राहुल कंवल – नहीं फिलहाल कोई आरोप नहीं है

नरेंद्र मोदी – फिर भाई कैसे और क्यों चिल्लाते रहते हो आप मीडिया वाले ,जब आप खुद मान रहे हो कि नहीं है तो आप देश को भी तो बताओ ना कि नहीं है



राहुल कंवल – बात आपकी सही है लेकिन ..............



नरेंद्र मोदी –

अरे !! नहीं है ये भी तो बताओ ना भाई





राहुल कंवल –

हम ये भी बताते हैं लेकिन ...............



नरेंद्र मोदी –

नहीं बताते हो मेहरबान आप लोग सच नहीं बताते हो देश को





राहुल कंवल –

हम ये मानते हैं मोदी जी कि फ़िलहाल आप पर कोई आरोप नहीं है लेकिन अभी आप पुरी तरह से बरी भी नहीं हुए हैं क्योंकि अब मामला सुप्रीम कोर्ट कि जगह निचली अदालत में चला जाएगा




नरेंद्र मोदी –

अरे भाई !! कमाल है ,यह तो एक सामान्य कानूनी प्रक्रिया है,अगर आप किसी कानून के जानकार से पूछो तो वो आपको बताएगा ,आप जरा खुद सोचो भई कि जब कहीं पर एक भी जगह पर मोदी के खिलाफ अब कोई शिकायत बची नहीं है तो आप लोग किस चीज कि चर्चा चलाते रहते हो मेरे खिलाफ ,वो तो मैं चुपचाप सह रहा हूँ क्योंकि आप लोगों ने इसको एक राजनीतिक रंग दिया हुआ है मुझे बदनाम करने के लिए ,इसीलिए आप चलाते रहिये, मेरी शुभकामनाएं हैं





राहुल कंवल –

लेकिन कुछ लोगों के दिमाग में अभी भी ये सवाल आता है कि अगर दौबारा 2002 दंगों जैसी कोई स्तिथि बनी तो तब नरेंद्र मोदी कि प्रतिक्रिया कैसी होगी ,क्या आप इस बात कि गारंटी लेते हैं कि दौबारा ऐसा कुछ कभी नहीं होगा ??



नरेंद्र मोदी –

मुझे एक बात बताओ आप देश कि सेवा करना चाहते हैं



राहुल कंवल –

बिलकुल



नरेंद्र मोदी –

ईमानदारी से मेहनत करना चाहते हैं



राहुल कंवल –

जी बिलकुल




नरेंद्र मोदी –

तो एक काम करोगे ??



( राहुल कंवल ने जवाब नहीं दिया इसका और चुप हो गया )




नरेंद्र मोदी –

करोगे ??, मैं आपसे ही पूँछ रहा हूँ



राहुल कंवल –

जी बोलिए ,बिलकुल करेंगे





नरेंद्र मोदी –


आप एक काम कीजिये , देश के 5 बड़े दंगो कि स्टडी कीजिए , 1984 के दिल्ली में हुए दंगे , बिहार के भागलपुर में हुए दंगे , 1969 में गुजरात के दंगे , 1992 के मुंबई के दंगे और 2002 में गुजरात के दंगे ,इन सब दंगों कि डिटेल रिपोर्ट उपलब्ध है ,जरा Analysis कीजिये ,इन पाँचों दंगो कि आपको जो पैरामीटर ठीक लगें उस हिसाब से तुलना कीजिये,जांच कीजिये , और अगर आपकी खुद कि रिसर्च में आपको लगे कि इन पाँचों में दंगे रोकने का सबसे अच्छा काम मेरे शासन में हुआ तो क्या आप देश को ये बताओगे ,जरा इतना काम करिये और उसके बाद कोई सवाल मन में उठे तो मेरे पास आना पूछने के लिए और ये ही जवाब है आपके इस दोगले सवाल का कि दौबारा ऐसा होगा तो मोदी क्या करेगा




राहुल कंवल –

लेकिन ये सवाल महत्वपूर्ण है मोदी जी





नरेंद्र मोदी –

महत्वपूर्ण तो आपके लिए हर चीज है वरना आप दिल्ली से यहाँ क्यों आते मेरे पास ऐसे सवाल पूछने के लिए ,आखिर आपकी रोजी-रोटी इसी पर चलती है भैया ,और इसी कारण मैं आपके सवाल के जवाब दे रहा हूँ और उसे फ़ालतू सवाल ना मानकर respect ही दे रहा हूँ और ये नहीं मान रहा कि आप मेरा समय खराब कर रहे हो ,आप तो भई sincerely ही काम कर रहे हो लेकिन मैं क्या कहता हूँ कि आपने जो ये मुझसे सवाल पूछा तो आप क्या बस इतना सा काम करोगे क्या कि इन पांच बड़े दंगो कि स्टडी जिनमें से चार कोंग्रेस के शासन में हुए हैं और एक मेरी बीजपी के शासन में हुआ , सिर्फ इन पांच दंगो कि रिसर्च करके इन पाँचों कि तुलना करते हुए इनको देश के सामने रखने कि हिम्मत करोगे क्या ,आपके सारे सवालों के जवाब आपको मिल जायेंगे ,लेकिन ये मेहनत किसी को करनी नहीं है ,सत्य खोजना नहीं है ,बस एक जो हवा चल पड़ती है उसी को लेकर चल पड़ते हैं ,कभी पीएम पद कि हवा चली तो उसको लेकर चल पड़े ,कभी करप्शन कि चल पड़ी तो उसको लेकर चल पड़े ,कभी दंगो कि चल पड़ी तो उसको लेकर चल पड़े





राहुल कंवल –

मोदी जी हम मानते हैं कि आपने हर बार ये कहा है कि कानून सबके लिए बराबर है और जो भी गुनहगार है उसको सजा मिले लेकिन क्या आप दंगों के गुनहगारों को सजा देंगे मुख्यमंत्री के रूप में




नरेंद्र मोदी –

मुख्यमंत्री सजा नहीं देता है ,सजा देने का काम न्यायपालिका करती है लेकिन मैं आपको यही तो कह रहा हूँ कि आप स्टडी करो ,मेहरबानी करके बस इतना करो भाई ,उम्र आपकी छोटी है थोड़ी मेहनत करो, इन चार दंगो में क्या हुआ और मेरे यहाँ क्या हुआ ,जब इन पाँचों दंगो पे रिसर्च करोगे ना तो खुद मानोगे कि गुजरात कि मेरी सरकार ने तो इतना अच्छा काम किया दंगे रोकने के लिए बाकी कि चार कोंग्रेस कि सरकारें उस समय क्या कर रही थी ,ये स्तिथि बनेगी




राहुल कंवल –

इंटरव्यू खत्म करने से पहले आपसे ये जानना चाहते हैं कि आजकल RSS ज्यादा आपके साथ दिखाई नहीं दे रही ,संघ-प्रमुख या उनके बाकी लीडर तो नहीं दिखाई दिए आपके साथ



नरेंद्र मोदी –

कहाँ पे चाहिए आपको




राहुल कंवल –

आपके इस शिविर में



नरेंद्र मोदी –
कौन सा शिविर ??,ये तो जनता-जनार्दन का समारोह है



राहुल कंवल –
लेकिन बीजपी के तो सारे नेता आये




नरेंद्र मोदी –
पहली बात है अगर यही आपका मापदंड है तब मैं आपको बता देता हूँ कि सुबह संघ के प्रान्त-संचालक मेरे साथ में थे ,संघ के सभी प्रांत-प्रचारक भी मेरे साथ में थे लेकिन अगर मीडिया को वे पहचान में नहीं आते हैं तो इसमें मैं क्या करूँ ,अभी शाम को सुरेश जी सोनी मेरे साथ काफी देर तक रहे ,सभी मेरे साथ थे




राहुल कंवल –

आपकी देश में बढती हुई चमक देखकर तो अब ये पक्का लगता है कि आपने अब पूरा मन बना लिया है देश का अगला प्रधानमंत्री बनने का



नरेंद्र मोदी –
देखिये मेरे जीवन को आप कितना जानते हैं मुझे मालुम नहीं लेकिन ........



राहुल कंवल –
बहुत Closely follow किया है आपके जीवन को


नरेंद्र मोदी –

नहीं मेरे जीवन को Closely follow करने भर से आप मुझे जान गए हैं ऐसा नहीं है क्योंकि आप लोग बस मेरे बारे में जो खबरें बनाते रहते हैं ना उसी का विश्लेषण भर करते हो लेकिन एक इंसान को जानने के लिए कुछ और चाहिए खैर मैं कह रहा था कि


मैंने बहुत छोटी आयु में ही घर छोड़ दिया था और फिर समाज-सेवा में लग गया था ,राजनीती से मेरा दूर-२ तक कोई लेना-देना नहीं था ,मैंने कभी जिंदगी में चुनाव नहीं लड़ा था ,मेरी जिंदगी अलग किस्म कि रही है ,अचानक कुछ विशिष्ट परिस्तियों में मुझ पर ये मुख्यमंत्री का दायित्व आ गया तो इसको मैं अच्छे से निभाने कि कोशिश कर रहा हूँ ,मैं आज जहाँ पर हूँ ना यहाँ पर भी कभी सोचकर नहीं पहुंचा,इस प्रकार का सोचना मेरी फितरत में ही नहीं है , हाँ लेकिन मेरी शुरू से एक Philosphy रही है जिस पर कि मेरा आज भी अटूट विश्वास है, और आम तौर पर जब कभी मुझे नौजवानों से मिलने का मौका लगता है तो मैं उन सबको भी वही बताता हूँ ,वो ये है कि जीवन में कभी भी कुछ बनने के सपने कभी मत देखो ,सपने देखने हैं तो कुछ करने के सपने देखो करने से ही संतोष मिलता है जी क्योंकि बनने के सपने देखने में परेशानी ये रहती है कि जैसे आज आप एक रिपोर्टर हैं और आप चीफ रिपोर्टर बनना चाहते हो लेकिन क्योंकि आप बन नहीं पा रहे हो तो रिपोर्टर बनने में भी आनंद नहीं ले पा रहे हो और इसी चीज को रोने-बैठने में आपका समय बर्बाद हो रहा है ,तो मैं नौजवानों को भी यही कहता हूँ और खुद भी इसी में यकीन रखता हूँ , इसीलिए मेरे जीवन में कुछ बनने का सपना कभी नहीं रहा और आज भी नहीं है लेकिन हाँ देश के लिए कुछ करने के सपने बहुत हैं ,मुझे गुजरात कि जिम्मेदारी मिली है और उसको मैं अच्छे से निभाने कि कोशिश कर रहा हूँ





राहुल कंवल –

लेकिन अब धीरे-२ ऐसा लग रहा है कि अब आपकी नजर के सामने अहमदाबाद के अलावा सारा हिंदुस्तान भी है ,क्योंकि हमने लाल कृष्ण आडवाणी जी से बात कि ,यशवंत सिन्हा जी से भी बात कि और उन दोनों ने यही कहा कि नरेंद्र मोदी बहुत ही प्रबल और बेहतर दावेदार है प्रधानमंत्री पद के ,तो क्या अब हम ये मानें कि नरेंद्र मोदी दावेदारी ठोक रहे हैं कि बीजपी कि तरफ से पीएम पद के अगले उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ही होंगे

राहुल कंवल –
लेकिन यही सवाल मैंने आपसे पहले भी पूछा था और आपने तब भी यही कहा था कि आपकी नजर सिर्फ साढ़े 6 करोड़ गुजरातियों पर ही है लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि आपकी उसके अलावा देश के बाकी लोगों पर भी नजर है




नरेंद्र मोदी –
मुझे अभी जिम्मेदारी मिली हुई है साढ़े 6 करोड़ गुजरातियों का भला करने कि लेकिन मैं साढ़े 6 करोड़ गुजरातियों का भला क्यों करना चाहता हूँ क्योंकि वही तो मेरे देश कि सेवा है ,जैसा कि मैंने पहले भी कहा है कि अगर मैं किसी पंचायत का प्रधान हूँ और उस पंचायत को मैं बहुत अच्छी चलाता हूँ तो मैं मानता हूँ कि मैं देश कि ही सेवा कर रहा हूँ ,मुझे बताइए जो मैं कर रहा हूँ क्या उसका कोई फायदा पाकिस्तान को है






नरेंद्र मोदी –

जब मैं वन्दे-मातरम का गान करता हूँ ना तो मेरे सामने पूरा हिंदुस्तान ही होता है , और सिर्फ अभी से नहीं जब स्कूल में भी पढता था तब से ही होता है, और हिंदुस्तान के हर नागरिक के दिल और दिमाग में सिर्फ हिंदुस्तान ही होना चाहिए , होना ही चाहिए ,नहीं है तो बुरा है , हम सभी का काम है कि हमारी भारत माता महान बने ,हमारी भारत माता सुखी हो , भले ही हम कहीं पर भी हों ,हम स्कूल के टीचर हो सकते हैं ,हम कोई ऑटो-रिक्शा ड्राईवर हो सकते हैं लेकिन उसके बाद भी हम देश के लिए काम कर सकते हैं, मेरे लिए अगर मैं किसी गाँव में काम करता हूँ तो वो मैं देश के लिए ही काम करता हूँ,किसी राज्य में काम करता हूँ तो देश के लिए ही काम करता हूँ क्योंकि मेरा एक ही मंत्र रहता है कि भारत के विकास के लिए गुजरात का विकास ,इसीलिए कुछ लेना ,पाना ,बनना ये नरेंद्र मोदी के जेहन में ही नहीं है ,जो मुझे जानते हैं वे कभी ऐसा सवाल ही नहीं करते हैं मेरे बारे में...




1). http://www.youtube.com/watch?v=IeBF2mPhDLc

2). http://www.youtube.com/watch?v=_Kl7_3G6fII

3). http://www.youtube.com/watch?v=EXCywjtXc-k

4) http://www.youtube.com/watch?v=4XlsccszFKw

5) http://www.youtube.com/watch?v=60HzJy_e0zQ

6) http://www.youtube.com/watch?v=gDUjNFVSUR8

7) http://www.youtube.com/watch?v=2nat39OYD2s




Friday, October 19, 2012

यह है भारत देश यहाँ के हिन्दू बड़े निराले हैं..

यह है भारत देश यहाँ के हिन्दू बड़े निराले हैं..
कुछ ही रामचन्द्र के भक्त हैं, बाकी बाबर के साले हैं..

लश्कर तोइबा की सेना में जितने दाढ़ी वाले हैं..
उस से ज्यादा हरिद्वार में माला - कंठी वाले हैं...

जब पकिस्तान में जितने घर हैं, उतने यहाँ शिवाले हैं..
फिर वन्दे मातरम् क्यों नहीं कहते क्या इनके मुह में ताले हैं ???
हे नकली भक्तों भारत माँ के, तेरे प्राण भी जाने वाले हैं...
क्यों की अब हर घर से प्रज्ञा और पुरोहित आने वाले हैं.....

जय श्री राम

एक सवाल श्री राम से.....

एक सवाल श्री राम से.....

तेरी इस दुनिया में ये मंज़र क्यों?
हमेशा तेरे ही भक्तों की पीठ में खंज़र क्यों ??

कहा गया है है कि तू सब की सुनता है ..
फिर तेरा भक्त पुरोहित अब तक अन्दर क्यों ??

जब तू ही लिखता है तकदीर पूरी दुनिया की..
फिर हिन्दू अभागे और मुल्ले मुक्कदर के सिकंदर क्यों ??

जब तूने ही वध किया था रावण जैसे पापी का...
फिर उसी धरती पर औरंगजेब और बाबर क्यों ??

तेरे राम राज में कभी बहता था शौर्य का दरिया....
आज उसी दुनिया में नामर्दी का सागर क्यों ??

जिन्होंने बीच चौराहे नंगा किया था तेरी हिन्दू नारियों को...
आज उन्ही के लिए भाई - भाई जैसा आदर क्यों ??

हे मेरे राम....

Sunday, October 7, 2012

किसी रोज़ शाम के वक़्त



सूरज के आराम के वक़्त 
मिल जाये जो साथ तेरा 
हाथ में ले कर हाथ तेरा 
दूर किसी तन्हाई में 
दुनिया की शातिर परछाई में 
अपने संग बिठाऊँ तुझे 
दिल का हाल सुनाऊँ तुझे 
तेरी तारीफ आम करूं 
तेरे हाथ की लकीरों में 
तलाश अपना नाम करूं......
Tujhe Paane Ki Is Liye Zidd Nahi Karte 
Ke Tujhe Khone Ko Dil Nahi Karta

Tu Milta Hai Toh Is Liye Nazrein Nahi Uthaate 
Ke Phir Nazrein Hatane Ko Dil Nahi Karta 

Dil Ki Baat Iss Liye Tujhse Nahi Karte
Ke Apna Dil Dukhane Ko Dil Nahi Karta

Khwabon Mein Iss Liye Tujhko Nahi Sajaate
Ke Phir Neend Se Jagne Ko Dil Nahi karta ..

Saturday, October 6, 2012

सफलता का रहस्य


एक बार एक नौजवान लड़के ने सुकरात से पूछा कि सफलता का रहस्य क्या  है?

सुकरात ने उस लड़के से कहा कि तुम कल मुझे नदी के किनारे मिलो.वो मिले. फिर सुकरात ने नौजवान से उनके साथ नदी की तरफ बढ़ने को कहा.और जब आगे बढ़ते-बढ़ते पानी गले तक पहुँच गया, तभी अचानक सुकरात ने उस लड़के का सर पकड़ के पानी में डुबो दिया. लड़का बाहर निकलने के लिए संघर्ष करने लगा , लेकिन सुकरात ताकतवर थे और उसे तब तक डुबोये रखे जब तक की वो नीला नहीं पड़ने लगा. फिर सुकरात ने उसका सर पानी से बाहर निकाल दिया और बाहर निकलते ही जो चीज उस लड़के ने सबसे पहले की वो थी हाँफते-हाँफते तेजी से सांस लेना.
सुकरात ने पूछा ,” जब तुम वहाँ थे तो तुम सबसे ज्यादा क्या चाहते थे?”
लड़के ने उत्तर दिया,”सांस लेना”
सुकरात ने कहा,” यही सफलता का रहस्य है. जब तुम सफलता को उतनी ही बुरी तरह से चाहोगे जितना की तुम सांस लेना  चाहते थे  तो वो तुम्हे मिल जाएगी” इसके आलावा और कोई रहस्य नहीं है.

संगती का असर


एक बार एक राजा शिकार के उद्देश्य से अपने काफिले के साथ किसी जंगल से गुजर रहा था | दूर दूर तक शिकार नजर नहीं आ रहा था, वे धीरे धीरे घनघोर जंगल में प्रवेश करते गए | अभी कुछ ही दूर गए थे की उन्हें कुछ डाकुओं के छिपने की जगह दिखाई दी | जैसे ही वे उसके पास पहुचें कि पास के पेड़ पर बैठा तोता बोल पड़ा – ,
” पकड़ो पकड़ो एक राजा आ रहा है इसके पास बहुत सारा सामान है लूटो लूटो जल्दी आओ जल्दी आओ |”
तोते की आवाज सुनकर सभी डाकू राजा की और दौड़ पड़े | डाकुओ को अपनी और आते देख कर राजा और उसके सैनिक दौड़ कर भाग खड़े हुए | भागते-भागते कोसो दूर निकल गए | सामने एक बड़ा सा पेड़ दिखाई दिया | कुछ देर सुस्ताने के लिए उस पेड़ के पास चले गए , जैसे ही पेड़ के पास पहुचे कि उस पेड़ पर बैठा तोता बोल पड़ा – आओ राजन हमारे साधू महात्मा की कुटी में आपका स्वागत है | अन्दर आइये पानी पीजिये और विश्राम कर लीजिये | तोते की इस बात को सुनकर राजा हैरत में पड़ गया , और सोचने लगा की एक ही जाति के दो प्राणियों का व्यवहार इतना अलग-अलग कैसे हो सकता है | राजा को कुछ समझ नहीं आ रहा था | वह तोते की बात मानकर अन्दर साधू की कुटिया की ओर चला गया, साधू महात्मा को प्रणाम कर उनके समीप बैठ गया और अपनी सारी कहानी सुनाई | और फिर धीरे से पूछा, “ऋषिवर इन दोनों तोतों के व्यवहार में आखिर इतना अंतर क्यों है |”
साधू महात्मा धैर्य से सारी बातें सुनी और बोले ,” ये कुछ नहीं राजन बस संगति का असर है | डाकुओं के साथ रहकर तोता भी डाकुओं की तरह व्यवहार करने लगा है और उनकी ही भाषा बोलने लगा है | अर्थात जो जिस वातावरण में रहता है वह वैसा ही बन जाता है कहने का तात्पर्य यह है कि मूर्ख भी विद्वानों के साथ रहकर विद्वान बन जाता है और अगर विद्वान भी मूर्खों के संगत में रहता है तो उसके अन्दर भी मूर्खता आ जाती है | इसिलिय हमें संगती सोच समझ कर करनी चाहिए |

Friday, October 5, 2012

स्टीव जॉब्स की भारत यात्रा


 स्टीव जॉब्स की भारत यात्रा

एक स्थानीय हाइ स्कूल में युवा जॉब्स को गर्मियों के दिनों में ह्युलेट पैकार्ड के संयंत्र में पालो आल्टो में काम करने का मौक़ा मिला और उन्होंने वहाँ एक साथी छात्र स्टीव वोज़नियाक के साथ मिलकर काम किया.
फिर एक ही साल बाद उन्होंने कॉलेज छोड़ दिया और वीडियो गेम बनाने वाली कंपनी अटारी के साथ काम किया क्योंकि वह भारत जाने के लिए पैसे जमा करना चाहते थे

जॉब्स जब भारत से लौटे तो उन्होंने बाल घुटवा लिए थे, वह भारतीय वेश-भूषा में थे और नशीले पदार्थ एलएसडी का सेवन कर चुके थे. मगर उसके बाद भी वह बौद्ध जीवन पद्धति में यक़ीन रखते थे और आजीवन शाकाहारी रहे.
उन्होंने फिर से अटारी में काम शुरू किया और अपने दोस्ट स्टीव वोज़नियाक के साथ मिलकर एक स्थानीय कंप्यूटर क्लब में जाना शुरू किया. वोज़नियाक ख़ुद का कंप्यूटर डिज़ायन कर रहे थे.
जॉब्स ने 1976 में वोज़निया की 50 मशीने एक स्थानीय कंप्यूटर स्टोर को बेच दीं और उस ऑर्डर की कॉपी के साथ एक इलेक्ट्रॉनिक्स डिस्ट्रीब्यूटर को कहा कि वह उन्हें कलपुर्जे दे दें जिसकी रक़म अदायगी कुछ समय बाद हो पाएगी.
जॉब्स ने ऐपल-1 नाम से एक मशीन लॉन्च की और ये पहली ऐसी मशीन थी जिससे उन्होंने किसी से धन उधार नहीं लिया और न ही उस बिज़नेस का हिस्सा किसी को दिया.
उन्होंने अपनी कंपनी का नाम अपने पसंदीदा फल पर ऐपल रखा. पहले ऐपल से हुआ लाभ एक बेहतर संस्करण का ऐपल-टू बनाने में लगा दिया गया जो कि 1977 के कैलिफ़ोर्निया के कंप्यूटर मेले में दिखाया गया.
नई मशीनें महँगी थीं इसलिए जॉब्स ने एक स्थानीय निवेशक माइक मारकुला को मनाया कि वह ढाई लाख डॉलर का कर्ज़ दें और वोज़नियाक को साथ लेकर उन्होंने ऐपल कंप्यूटर्स नाम की कंपनी बनाई.

Wednesday, October 3, 2012

कथा हिन्दु-कुश की :

Agar Mohabat Yehi Hai Dost Toh Maaf Karna Mujhe Nahi Hai...!

Libas Tan Se Utaar Dena
Kisi Ko Banhon Ke Haar Dena
Phir Uske Jazbon Ko Maar Dena
Agar Mohabat Yehi Hai Dost Toh Maaf Karna Mujhe Nahi Hai..!

Gunah Karne Ka Soch Lena
Haseen Pariyan Daboch Lena
Phir Uski Aankhein Hi Noch Lena
Agar Mohabat Yehi Hai Dost Toh Maaf Karna Mujhe Nahi Hai..!

Kisi Ko Lafzon Ke Jaal Dena
Kisi Ko Jazbon Ki Dhaal Dena
Phir Uski Izzat Uchaal Dena
Agar Mohabat Yehi Hai Dost Toh Maaf Karna Mujhe Nahi Hai...!

Andhair Raste Me Chalte Jana
Haseen Kaliyan Sochte Jana
Aur Apni Fitrat Pe Muskurana
Agar Mohabat Yehi Hai Dost Toh Maaf Karna Mujhe Nahi Hai...!

Wednesday, September 12, 2012

                       शाकाहार : उत्तम आहार

                          Vegetarianism: The Best Diet


एक प्रेस समाचार के अनुसार अमरीका में डेढ़ करोड़ व्यक्ति शाकाहारी हैं। दस वर्ष पूर्व नीदरलैंड की ''१.५% आबादी'' शाकाहारी थी जबकि वर्तमान में वहाँ ''५%'' व्यक्ति शाकाहारी हैं। सुप्रसिद्ध गैलप मतगणना के अनुसार इंग्लैंड में प्रति सप्ताह ''३००० व्यक्ति'' शाकाहारी बन रहे हैं। वहाँ अब ''२५ लाख'' से अधिक व्यक्ति शाकाहारी हैं। सुप्रसिद्ध गायक माइकेल जैकसन एवं मैडोना पहले से ही शाकाहारी हो चुके हैं। अब विश्व की सुप्रसिद्ध टेनिस खिलाड़ी मार्टिना नवरातिलोवा ने भी 'शाकाहार' व्रत धारण कर लिया है। बुद्धिजीवी व्यक्ति शाकाहारी जीवन प्रणाली को अधिक आधुनिक, प्रगतिशील और वैज्ञानिक कहते हैं एवं अपने आपको शाकाहारी कहने में विश्व के प्रगतिशील व्यक्ति गर्व महसूस करते हैं।

संसार के महान बुद्धिजीवी, उदाहरणार्थ अरस्तू, प्लेटो, लियोनार्दो दविंची, शेक्सपीयर, डारविन, पी.एच.हक्सले, इमर्सन, आइन्सटीन, जार्ज बर्नार्ड शा, एच.जी.वेल्स, सर जूलियन हक्सले, लियो टॉलस्टॉय, शैली, रूसो आदि सभी शाकाहारी ही थे।

विश्वभर के डॉक्टरों ने यह साबित कर दिया है कि शाकाहारी भोजन उत्तम स्वास्थ्य के लिए सर्वश्रेष्ठ है। फल-फूल, सब्ज़ी, विभिन्न प्रकार की दालें, बीज एवं दूध से बने पदार्थों आदि से मिलकर बना हुआ संतुलित आहार भोजन में कोई भी जहरीले तत्व नहीं पैदा करता। इसका प्रमुख कारण यह है कि जब कोई जानवर मारा जाता है तो वह मृत-पदार्थ बनता है। यह बात सब्ज़ी के साथ लागू नहीं होती। यदि किसी सब्ज़ी को आधा काट दिया जाए और आधा काटकर ज़मीन में गाड़ दिया जाए तो वह पुन: सब्ज़ी के पेड़ के रूप में हो जाएगी। क्यों कि वह एक जीवित पदार्थ है। लेकिन यह बात एक भेड़, मेमने या मुरगे के लिए नहीं कही जा सकती। अन्य विशिष्ट खोजों के द्वारा यह भी पता चला है कि जब किसी जानवर को मारा जाता है तब वह इतना भयभीत हो जाता है कि भय से उत्पन्न ज़हरीले तत्व उसके सारे शरीर में फैल जाते हैं और वे ज़हरीले तत्व मांस के रूप में उन व्यक्तियों के शरीर में पहुँचते हैं, जो उन्हें खाते हैं। हमारा शरीर उन ज़हरीले तत्वों को पूर्णतया निकालने में सामर्थ्यवान नहीं हैं। नतीजा यह होता है कि उच्च रक्तचाप, दिल व गुरदे आदि की बीमारी मांसाहारियों को जल्दी आक्रांत करती है। इसलिए यह नितांत आवश्यक है कि स्वास्थ्य की दृष्टि से हम पूर्णतया शाकाहारी रहें।

पोषण :

अब आइए, कुछ उन तथाकथित आँकड़ों को भी जाँचें जो मांसाहार के पक्ष में दिए जाते हैं। जैसे, प्रोटीन की ही बात लीजिए। अक्सर यह दलील दी जाती है कि अंडे एवं मांस में प्रोटीन, जो शरीर के लिए एक आवश्यक तत्व है, अधिक मात्रा में पाया जाता है। किंतु यह बात कितनी ग़लत है यह इससे साबित होगा कि सरकारी स्वास्थ्य बुलेटिन संख्या ''२३'' के अनुसार ही ''१०० ग्रा''. अंडों में जहाँ ''१३ ग्रा.'' प्रोटीन होगा, वहीं पनीर में ''२४ ग्रा.'', मूंगफल्ली में ''३१ ग्रा.'', दूध से बने कई पदार्थों में तो इससे भी अधिक एवं सोयाबीन में ''४३ ग्रा.'' प्रोटीन होता है। अब आइए कैलोरी की बात करें। जहाँ ''१०० ग्रा.'' अंडों में ''१७३ कैलोरी'', मछली में ''९१ कैलोरी'' व मुर्गे के गोश्त में ''१९४ कैलोरी'' प्राप्त होती हैं वहीं गेहूँ व दालों की उसी मात्रा में लगभग ''३३० कैलोरी'', सोयाबीन में ''४३२ कैलोरी'' व मूंगफल्ली में ''५५० कैलोरी'' और मक्खन निकले दूध एवं पनीर से लगभग ''३५० कैलोरी'' प्राप्त होती है। फिर अंडों के बजाय दाल आदि शाकाहार सस्ता भी है। तो हम निर्णय कर ही सकते हैं कि स्वास्थ्य के लिए क्या चीज़ ज़रूरी है। फिर कोलस्ट्रोल को ही लीजिए जो कि शरीर के लिए लाभदायक नहीं है। ''१०० ग्राम'' अंडों में कोलस्ट्रोल की मात्रा ''५०० मि.ग्रा.'' है और मुरगी के गोश्त में ''६०'' है तो वहीं कोलस्ट्रोल सभी प्रकार के अन्न, फलों, सब्ज़ियों, मूंगफली आदि में 'शून्य' है। अमरीका के विश्व विख्यात पोषण विशेषज्ञ डॉ.माइकेल क्लेपर का कहना है कि अंडे का पीला भाग विश्व में कोलस्ट्रोल एवं जमी चिकनाई का सबसे बड़ा स्रोत है जो स्वास्थ्य के लिए घातक है। इसके अलावा जानवरों के भी कुछ उदाहरण लेकर हम इस बात को साबित कर सकते हैं कि शाकाहारी भोजन स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद है। जैसे गेंडा, हाथी, घोड़ा, ऊँट। क्या ये ताकतवर जानवर नहीं हैं? यदि हैं, तो इसका मुख्य कारण है कि वे शुद्ध शाकाहारी हैं। इस प्रकार शाकाहारी भोजन स्वास्थ्यप्रद एवं पोषण प्रदान करनेवाला है।

स्वाभाविक भोजन:
मनुष्य की संरचना की दृष्टि से भी हम देखेंगे कि शाकाहारी भोजन हमारा स्वाभाविक भोजन है। गाय, बंदर, घोड़े और मनुष्य इन सबके दाँत सपाट बने हुए हैं, जिनसे शाकाहारी भोजन चबाने में सुगमता रहती हैं, जबकि मांसाहारी जानवरों के लंबी जीभ होती है एवं नुकीले दाँत होते हैं, जिनसे वे मांस को खा सकते हैं। उनकी आँतें भी उनके शरीर की लंबाई से दुगुनी या तिगुनी होती हैं जबकि शाकाहारी जानवरों की एवं मनुष्य की आँत उनके शरीर की लंबाई से सात गुनी होती है। अर्थात, मनुष्य शरीर की रचना शाकाहारी भोजन के लिए ही बनाई गई हैं, न कि मांसाहार के लिए।


अहिंसा और जीव दया :

आज विश्व में सबसे बड़ी समस्या है, विश्व शांति की और बढ़ती हुई हिंसा को रोकने की। चारों ओर हिंसा एवं आतंकवाद के बादल उमड़ रहे हैं। उन्हें यदि रोका जा सकता हैं तो केवल मनुष्य के स्वभाव को अहिंसा और शाकाहार की ओर प्रवृत्त करने से ही। महाभारत से लेकर गौतम बुद्ध, ईसा मसीह, भगवान महावीर, गुरुनानक एवं महात्मा गांधी तक सभी संतों एवं मनीषियों ने अहिंसा पर विशेष ज़ोर दिया है। भारतीय संविधान की धारा ''५१ ए (जी)'' के अंतर्गत भी हमारा यह कर्तव्य है कि हम सभी जीवों पर दया करें और इस बात को याद रखें कि हम किसी को जीवन प्रदान नहीं कर सकते तो उसका जीवन लेने का भी हमें कोई हक नहीं हैं।